बचपन में
खाना मनपसन्द न हो
तो माँ कई और ऑप्शन देतीं...
अच्छा घी लगा के
गुड़ के साथ रोटी खा लो.
अच्छा आलू की
भुजिया बना देती हूँ चलो.
अच्छा चलो
दूध के साथ चावल खा लो...
माँ नखरे सहती थी,
इसलिए उनसे लड़ियाते भी थे.
लेकिन
बाद में किसी ने
इस तरह लाड़ नहीं दिखाया.
मैं भी अपने आप
सारी सब्जियाँ खाने लगीं.
मेरे जीवन में
माँ केवल एक ही है,
दोबारा कभी कोई माँ नहीं आई.
पति कब
छोटा बच्चा हो जाता है,
कब उस पर मुहब्बत से ज्यादा दुलार बरसने लगता है... पता ही नहीं चलता.
उनके सिर में
तेल भी लग जाता है,
ये परवाह भी होने लगती है कि उसका पसन्दीदा (फेवरेट) खाना बनाऊँ, उसके नखरे भी उठाए जाने लगते हैं.
लड़कों के
जीवन में कई माँएँ आती हैं,
बहन भी माँ हो जाती है,
पत्नी तो होती ही है....
बेटियाँ भी
एक उम्र के बाद
बूढ़े पिता की माँ ही बन जाती हैं.
लेकिन
लड़कियों के पास
जीवन में केवल एक ही माँ होती है.
बड़े होने के बाद
उसे दोबारा कोई माँ नहीं मिलती, वो लाड़-दुलार, नखरे, दोबारा कभी नहीं आते.
लड़कियों को
जीवन में केवल और केवल
एक बार हाँ एक ही बार मिलती है माँ.
सभी बेटियों को सादर समर्पित..
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