बहुत मर्मस्पर्शी
जन्मदिन का उपहार
मैं सुचित्रा। आज मेरा जन्मदिन है।
सचिन ने सुबह ही कहा : *" आज कुछ बनाना नहीं। लंच के लिए हम बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी। "*
10 साल हो गए हमारी शादी को। मैं सचिन को बहुत अच्छे से जानती हूँ। जीवन के अनोखे अनुभव देना, दुनिया से अलग कुछ मजेदार करना उसकी आदत में शुमार है।
दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे यानी लंच पर मैं और सचिन ही जाएँगे और बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे।
दोपहर 12 बजे हम घर से निकले।
एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची। पार्किंग की लिफ्ट में हम दाखिल हुए और सचिन ने 5 वीं मंजिल का स्विच दबाया।
इस मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे लेकिन सचिन मेरा हाथ थामे उन सारे स्टॉल्स के सामने से आगे बढ़ता गया। फाइनली एक बंद द्वार पर हम पहुँचे। *द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिसपर लिखा था : “ Dialogue in the dark ”*
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। *" अंधेरे में संवाद " ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ?*
द्वार ठेलकर हम अंदर पहुँचे। वो एक मध्यम आकार बिना चेयर टेबल्स वाला कमरा था। रिसेप्शन काउंटर के पीछे से तुरंत एक सूटबूटधारी बाहर आया और स्वागत भरे स्वर में हमसे बोला : *" वेलकम मिस्टर सचिन। हैप्पी बर्थडे टू यू मैडम। "*
मैं समझ गई कि, सचिन पहले ही सारी व्यवस्था कर चुका है। फिर सूटबूटधारी बोला : *" सर, मैडम, यू आर अवर स्पेशल गेस्ट टुडे। कहिए क्या लेंगे आप ? "*
उसने काउंटर पर से उठाकर एक मैनू कार्ड हमें दिया। सचिन ने कार्ड मुझे थमाया। *मुझे अजीब लगा। टेबल पर बैठने से पहले ही ऑर्डर देने की प्रथा मैंने पहली बार अनुभव की। बड़ा विचित्र लग रहा था सब कुछ। मुस्कुराते हुए सचिन, मेरे चेहरे पर आते जाते भावों को पढ़ जैसे आनंदित हो रहा था। फिर मैंने ऑर्डर दिया और वह आदमी हमें कमरे के एक अन्य दरवाजे पर ले गया और उसे खोला।*
सामने एक संकरा गलियारा नजर आया जिसपर 3 लोग एक साथ नहीं चल सकते थे। वो आदमी आगे बढ़ा और हम उसके पीछे। कुछ कदम बाद गलियारा दाएँ मुड़ गया। हम भी मुड़े। पीछे कमरे की जो थोड़ी बहुत रोशनी आ रही थी, वो भी खत्म हो गई। उस गलियारे में प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं थी। अगले मोड़ के बाद इतना अंधेरा हो गया कि, मैंने सचिन का हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ को गलियारे की दीवार को महसूस करती आगे बढ़ती रही। सचिन मेरे हाथ पर दबाव बढ़ाकर जैसे मुझे सांत्वना दे रहा था। अगले *मोड़ के बाद हाथ को हाथ सुझाई देना भी बंद हो गया। आँखें फाड़ फाड़कर देखने के बाद भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन हवा ठंडी और खुशबूदार थी। फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे।*
उस आदमी ने किसी को आवाज लगाई : *" संपत। "*
*“ यस सर। ”* अंधेरे में ही जवाब मिला। फिर किसी के करीब आते कदमों की आवाज आई।
*“ ये आज के हमारे स्पेशल गेस्ट हैं। आज मैडम का बर्थडे है। गिव देम स्पेशल ट्रीट। ऑर्डर मैंने ले लिया है, तुम इन्हें इनकी टेबलपर लेकर जाओ। "*
*“ यस सर। ”* : अंधेरे में फिर वही आवाज एकदम करीब सुनाई दी।
अब उस दूसरे आदमी संपत ने हमारे हाथ थामे और हमें टेबल पर पहुँचाया। फिर चेयर सरकाने की आवाज आई और उसने मेरा हाथ चेयर की पीठ पर रखा। वैसे ही जरूर सचिन के साथ भी किया होगा।
हम बैठ गए। *मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया। जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ? ये सचिन की कैसी जग से निराली पार्टी है ? ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ? ऐंसे न जाने कितने प्रश्न मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे। लेकिन मुझे सचिन पर भरोसा था। आज जरूर उसने मेरे लिए कुछ अलग, कुछ आश्चर्यजनक कर रखा है।*
फिर कोई आया और उसने हमारे हाथ धुलवाए। फिर टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना जाना समझ में आ रहा था। फिर *संपत ने मेरे हाथ प्लेट्स पर छुआए और उनकी पोजीशन बताई। चम्मच मेरे हाथ में पकड़ाया। फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा।*
सबकुछ सर्व होने के बाद वो बोला : *" मैंने परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए। आपको कुछ दिखेगा नहीं लेकिन मुझे विश्वास है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा। "*
उस घनघोर अंधेरे में मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा और पहला निवाला लिया। फिर ऐंसे ही अंदाज से 4-5 निवाले और खाए। उल्टे हाथ से मैंने प्लेट पकड़ी हुई थी अतः प्रत्येक पदार्थ की जगह सीधे हाथ के स्पर्श से मुझे ज्ञात हो रही थी।
और फिर, *आहा... अंधेरे में भी मैं बड़ी सहजता से भोजन कर पा रही थी। खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे लेकिन साथ ही इस अनोखे खेल में एक अलग ही आनंद की अनुभूति हम दोनों को ही हो रही थी। सचिन ने किस पदार्थ का निवाला लिया ये मैं पूछ रही थी और ऐंसे ही सचिन मुझसे पूछता जा रहा था। कभी कभी हम दोनों का जवाब एक ही होता था तो कभी अलग। बहुत मजा आ रहा था। उस स्याह अंधकार में, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे। बीच बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता।*
हमें *खुद नहीं समझ आ रहा था कि, प्लेट में कौन सा पदार्थ खत्म हुआ लेकिन संपत को शायद दिव्यदृष्टि प्राप्त थी, जो वो तुरंत समझ जाता और पुनः वह पदार्थ परोस देता।*
आखीर में *संपत स्वीट डिश लाया जो उसने हमारे हाथों में थमा दी।*
मेरा *जन्मदिन, अंधेरे में लंच, एक अनोखा आनंद दे गया। कदाचित कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा।*
*" आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा। मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा। "* ---संपत ने कहा।
तो सचिन बोल पड़ा : *" हाँ.... हाँ.... अब चलो। बिल भी तो बाहर ही पे करना है। चलो संपत, ले चलो हमें। "*
फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला। अंधेरे हॉल से बाहर निकल हम गलियारे में पहुँचे तो दूसरा खाली हाथ स्वतः ही दीवार को छूने लगा।
दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे।
फाइनली रिसेप्शन काउंटर वाले रूम में हम पहुँचे। सचिन बिल देने काउंटर पर पहुँचा और संपत लौटकर गलियारे की ओर बढ़ा। उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज लगाई तो संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा।
तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और *मैं जहाँ की तहाँ खड़ी रह गई, मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गढ्ढे नजर आ रहे थे। वो पूर्ण रूप से अँधा था।*
संपत बोला : *" येस मैडम ? "*
मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ? फिर मैंने कहा : *" संपत, अपनी ऐंसी हालत में भी तुमने, हमारी खूब और दिलखुश सेवा की, इतनी बढ़िया खातिरदारी की। मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी। "*
संपत : *" मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है वो तो हमारा रोज का ही है। लेकिन हमने उसपर विजय पा ली है। We are not disabled, we are differently able people. We can lead our life without any problem with all joy and happiness as you enjoy. ”*
मुझे अपने सहानुभूति पूर्ण बोले गए शब्दों पर खुद ही लज्जा आई। *बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज एक सशक्त व्यक्ति से आज सचिन ने मुझे मिलवाया। ऐंसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा। मुझे अभिमान है अपने सचिन पर।*
सचिन बिल देकर मेरे पास आया और बिल मेरे हाथ में पकड़ाया। हमेशा सचिन को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने, बिल को देखा तो मेरी नजर बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई.......
लिखा था : *We do not accept tips, Please think of donating your eyes, which will bring light to somebody’s life.* (हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा)
*नेत्रदान महादान...*🙏
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें