टिमटिम दीपशिखा दीपक की
कहती है
आस और विश्वास के तले
सुख की रानी रहती है
आँख कली की सूर्य-तेज की किरणों से जा टकराये
तभी महकते नये फूल की उन्नति पाकर खिल पाये
उधर धूप से छुपकर रहने वाली पत्ती गिरती है
टिमटिम दीपशिखा दीपक की
कहती है
पन्थ भले ही बोझिल हो लेकिन राही मतवाला हो
उजली उजली नज़र हँस पड़े भले अंधेरा काला हो
मन के उजलेपन से टकराकर हर बाधा ढहती है
टिमटिम दीपशिखा दीपक की
कहती है
गाये स्वेद बहाने वाला हाथ बढ़ाने वाला गाये
चट्टानों पर कठिन फावड़ा निडर उठाने वाला गाये
अकड़े पत्थर के नीचे से कलकल सरिता बहती है
टिमटिम दीपशिखा दीपक की
कहती है
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