विदेशी पूछ रहे, “आपके देश ने ये सब कैसे संभाल लिया ? इतना बड़ा, इतना विशाल देश. सघन बसाहट वाला लेकिन न सिर्फ कोविड – १९ संक्रमितों की संख्या पर आपने नियंत्रण रखा हैं, वरन सारे देश में कानून व्यवस्था बिलकुल चुस्त – दुरुस्त हैं. इतने बड़े देश में लॉकडाउन करना कैसे संभव हुआ..?”
प्रश्न जायज हैं.
पूरे दुनिया में पंद्रह लाख संक्रमित हैं. चौरासी हजार लोग इस वाइरस से मर चुके हैं. और भारत में संक्रमितों की संख्या हैं – साढ़े पांच हजार और मरने वालों की संख्या १६४. (यदि ‘तब्लिगी जमात’ ने यह सब तमाशा नहीं किया होता, तो हमारे यहां संक्रमितों की और मृतकों की संख्या बहुत कम रहती)
दुनिया मानती हैं की हम बहुत ज्यादा अनुशासित नहीं हैं. लेकिन कुछ तो बात हैं हमारी हस्ती में, की हम इस संकट का धैर्य से प्रतिकार कर रहे हैं।
पूरे विश्व मे, छोटे छोटे से देशों ने भी पूर्ण लॉकडाउन नहीं किया। चीन ने भी पूरे देश में, पूरा लॉकडाउन नहीं किया। लंदन की ट्यूब रेल, जर्मनी की U और S Bahn, स्पेन की मेट्रो ट्रेन आज भी दौड़ रही हैं। अमरीका में इस महामारी के प्रकोप से हजारों लोग मर रहे हैं, पर ट्रूम्प साहब पूरे देश को ठप्प करने के पक्ष में नहीं हैं। उन्हे लगता हैं, अमरीका की सारी इकॉनोंमी इसके कारण बैठ जाएगी।
लेकिन हमने यह जो निर्णय लिया, वह बहुत ज्यादा होशियारी वाला निर्णय साबित हो रहा हैं। इस विशाल देश को बंद करना आसान नहीं था। बहुत समस्याएँ थी। रोजदारी पर काम करने वाले, मेहनतकश मजदूर, छोटे बड़े उद्योग, व्यापारी इन सभी पर गाज गिरने वाली थी लेकिन हमारे देश ने इसको हिम्मत के साथ लिया। लॉकडाउन चालू होने बाद, तुरंत स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हुई। पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक चट्टान के भांति खड़े हो गए। प्रारंभ में केरल में संक्रामितों की संख्या बढ़ रही थी तब वहां के अस्पतालों को साफ करने से लेकर तो जम्मू और देहरादून में अटके मजदूरों को भोजन देने तक संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा का जबरदस्त नेटवर्क खड़ा किया। महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे अनेक जगहों पर सरकारी अमले ने संघ स्वयंसवेकों से मदद मांगी। भोजन की व्यवस्था होती गई। सरकारी तंत्र खड़ा हो रहा था लेकिन हमारा देश केवल सरकारी तंत्र से नहीं चलता। एक सौ तीस करोड़ की जनता यह इस देश की ताकत हैं. ऐसे ही प्रसंगों में साबित होता हैं, क़ि यह मात्र नदी, नालों, पहाड़ों, मैदानों, खेतों, खलिहानों का देश नहीं, यह एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैं...!
शहरों के अपार्टमेंट में काम करने वाले सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मीयों को रोज चाय, नाश्ता, भोजन आने लगा। अनेक स्थानों पर सफाई कर्मियों का सम्मान हुआ. पंजाब में उन पर फूल बरसाएँ गए। अनेक चौराहों पर पुलिस कर्मियों को नाश्ता – पानी पहुंचाया गया।
पुलिस कर्मियों ने भी गज़ब की संजीदगी दिखाई। शहरों से अपने गाँव लौटने वाले मजदूरों को संघ स्वयंसेवकों ने, पुलिस कर्मियों ने भोजन खिलाया, उनके रुकने का प्रबंध किया. जहां संभव हुआ, वहां उन्हे गाँव तक पहुचाने की व्यवस्था भी की. एक स्थान पर तो लगभग एक हजार किलोमीटर पैदल चल कर आने वाले मजदूर के पैर के छाले देखकर, पुलिस का दिल पसीज गया। उसने स्वतः उस मजदूर के पाव में मलहम लगाया...!
जी हां. यह भारत हैं..!
सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव पहुचने वाले मजदूर हो, या फिर अपना बड़ा सा उद्योग – व्यवसाय बंद कर के घर में बैठा एकदा उद्योगपति, सायकल रिक्शा चलाने वाला मेहनतकश हो, या रास्ते पर व्यवसाय करने वाला, रोज की रोटी की फिकर करने वाला एकदा छोटासा ठेलेवाला.... इन सब को तकलीफ जरूर हुई. बहुत ज्यादा हुई. लेकिन किसी ने सरकार को गाली नहीं दी. सरकार के विरोध में पत्थर नहीं उठाएँ. दुकाने नहीं लूटी.
बल्कि, चाहे २१ मार्च का जनता कर्फ़्यू हो, २२ मार्च का कृतज्ञता ज्ञापन हो या फिर पाच अप्रैल की रात नौ बजे एकजूटता के दीप जलाने का प्रधानमंत्री मोदी जी का आह्वान हो.... इस देश की जनता ने जो एकता दिखाई, उसने विश्व में इतिहास रच दिया यह सब अद्भुत था.. फूटपाथ की छोटीसी झोपड़ी हो या बड़े महल, कोठियाँ, राजभवन, अपार्टमेंटस हो... सारा देश उस दिन एक ही समय जगमगा रहा था....!
भारत का राष्ट्रपुरुष जाग रहा हैं. इसके बाद की दुनिया के दो हिस्से होंगे – कोरोना से पहले और कोरोना के बाद ! इस कोरोना के बाद वाले हिस्से में हम इतिहास बनाने जा रहे हैं. सारा विश्व एक अलग नजर से हमारी ओर देखेगा...
जी हां. क्यूंकी ये भारत हैं...!🚩