बुधवार, 8 जुलाई 2020

शायर है ये...

दर्द आँखों से निकला तो सबने बोला
कायर है ये
जब दर्द लफ़्ज़ों से निकला तो सब बोले
शायर है ये...




मज़ा अलग है जीने में
राज़ अगर हों सीने में।

तूफां से टकराता हूँ
खस्ताहाल सफीने में।

कभी कभी हंस लेते हैं
कभी सालों में महीने में।

गुज़री है कुछ यूं अब तक
टाट कभी पशमीने में।

फर्क नहीं फकीरों को
पत्थर और नगीने में।

मेहनत कर, बहा जरा
महक है फिर पसीने में।

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