सोमवार, 6 जुलाई 2020

प्रताप का सफर DRDO तक ..आज प्रेरणा का स्त्रोत

हमारे देश में हीरो की परिभाषा ही गलत है। फिल्मी कलाकारों को हमारे देश में हीरो कहा जाता है ... जबकि हीरो सिर्फ असल जीवन में सफलता अर्जित करनेवाले ही होते हैं ... जो जीरो से उठ खड़ा हो वही हीरो है। ...

यह तस्वीर है कर्नाटक के छोटे से गाँव कडइकुडी (मैसूर) के एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुये प्रताप की ... इस 21 वर्षीय वैज्ञानिक ने फ्रांस से प्रतिमाह 16 लाख की तनख्वाह, 5 BHK फ्लैट और 2.5 करोड़ की कार ऑफर ठुकरा दिया ... और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इन्हें DRDO में नियुक्त किया है। ....

प्रताप एक गरीब किसान परिवार से हैं, बचपन से ही इन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स में काफी दिलचस्पी थी ... 12 क्लास में जाते-जाते पास के सायबर कैफे में जाकर इन्होंने अंतरिक्ष, विमानों के बारे में काफी जानकारी इकठ्ठा कर ली ....

दुनियाँ भर के वैज्ञानिकों को अपनी टुटी-फुटी अंग्रेजी में मेल भेजते रहते थे कि मैं आपसे सीखना चाहता हूँ ... पर कोई जवाब सामने से नहीं आता ... इंजिनियरींग करना चाहते थे, लेकिन पैसे नहीं थे ....

इसलिये Bsc में एडमिशन ले लिया, पर उसे भी पैसों की वजह से पुरा नहीं कर पाये। 

पैसे न भर पाने की वजह से इन्हें होस्टल से बाहर निकाल दिया गया ... यह सरकारी बस स्टैंड पर रहने सोने लगे, कपड़े वहीं के पब्लिक टॉयलेट में धोते रहे ... इंटरनेट की मदत से कम्प्युटर लैंग्वेजेस जैसे C,C++,java, Python सब सीखा ...
 
इलेक्ट्रोनिक्स कचरे से ड्रोन बनाना सीख लिया। 

80 बार असफल होने के बाद आखिरकार वह ड्रोन बनाने में सफल रहे ... उस ड्रोन को लेकर वह IIT Delhi में हो रहे एक प्रतिस्पर्धा में चले गये... और वहाँ जाकर "द्वितिय पुरस्कार" प्राप्त किया... वहाँ उन्हें किसी ने जापान में होने वाले ड्रोन कॉम्पटिशन में भाग लेने को कहा...

उसके लिये उन्हें अपने प्रोजेक्ट को चेन्नई के एक प्रोफसेर से अप्रुव करवाना आवश्यक था... दिल्ली से वह पहली बार चेन्नई चले गये... काफी मुश्किल से अप्रुवल मिल गया... जापान जाने के लिये 60000 रूपयों की जरूरत थी... एक मैसूर के ही भले इंसान ने उनकी मदत की ...प्रताप ने अपनी माता जी का मंगलसुत्र बेच दिया और जापान चले गये।...

जब जापान पहूंचे तो सिर्फ 1400 रूपये बचे थे।... इसलिये जिस स्थान तक उन्हें जाना था उसके लिये बुलेट ट्रेन ना लेकर सादी ट्रेन पकड़ी।... 16 स्टॉप पर ट्रेन बदली... उसके बाद 8 किलोमिटर तक पैदल चलकर हॉल तक पहुंचे।...

प्रतिस्पर्घा स्थल पर उनकी ही तरह 127 देशों से लोग भाग लेने आये हुये थे।... बड़ी-बड़ी युनिवर्सिटी के बच्चे भाग ले रहे थे।... नतीजे घोषित हुये।... ग्रेड अनुसार नतीजे बताये जा रहे थे।... प्रताप का नाम किसी ग्रेड में नहीं आया।...

वह निराश हो गये।

अंत में टॉप टेन की घोषणा होने लगी। प्रताप वहाँ से जाने की तैयारी कर रहे थे।

10 वे नंबर के विजेता की घोषणा हुई ...

9 वे नंबर की हुई ...

8 वे नंबर की हुई ...

7..6..5..4..3..2 और पहला पुरस्कार मिला हमारे भारत के प्रताप को।

अमेरिकी झंडा जो सदैव वहाँ उपर रहता था वह थोड़ा नीचे आया, और सबसे उपर तिरंगा लहराने लगा... 

प्रताप की आँखे आँसू से भर गयी। वह रोने लगे।...

उन्हें 10 हजार डॉलर (सात लाख से ज्यादा) का पुरस्कार मिला।...

तुरंत बाद फ्रांस ने इन्हें जॉब ऑफर की।...

मोदी जी की जानकारी में प्रताप की यह उपलब्धि आयी।... उन्होंने प्रताप को मिलने बुलाया तथा पुरस्कृत किया।... उनके राज्य में भी सम्मानित किया गया।... 600 से ज्यादा ड्रोन्स बना चुके हैं ...

मोदी जी ने DRDO से बात करके प्रताप को DRDO में नियुक्ती दिलवाई।... आज प्रताप DRDO के एक वैज्ञानिक हैं।...

इसलिये हीरो वह है, जो जीरो से निकला हो। प्रताप जैसे लोगों को प्रेरणा का स्त्रोत आज के विद्यार्थियों को बनाना चाहिये, ना की टिकटॉक जैसे किसी एप्प पर काल्पनिक दुनियाँ में जीने वाले किसी रंगबिरंगे बाल वाले जोकर को।

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