मंगलवार, 19 मई 2020

सुविचार

विक्रम संवत.............२०७७
मास...............ज्येष्ठ
पक्ष................कृष्ण
तिथि...............द्वादशी
वार..................मंगलवार
दिनांक.............१९-५-२०२०






🙏🏽🚩 जय श्री राम🚩

 सुविचार:▶ " हम कभी भी किसी भी जीव के अस्तित्व को व्यर्थ मत मिटाए। 
बस शांतिपूर्वक जिये और दूसरो को भी जीने दे।"

सोमवार, 18 मई 2020

सुविचार

विक्रम संवत.............२०७७
मास...............ज्येष्ठ
पक्ष................कृष्ण
तिथि...............एकादशी
वार..................सोमवार
दिनांक.............१८-५-२०२०






🙏🏽 🕉 हर हर महादेव 🕉

 सुविचार:➡ " सभी जीवो का अगर हम सम्मान करे, तो वो भी एक अहिंसा का रूप हैं।"

रविवार, 17 मई 2020

सुविचार


🙏🏽🍁 वंदे मातरम् 🍁

सुविचार:👉 " जब हम सपने देखना छोड़ देते हैं तो हम जीना छोड़ देते हैं।"

शनिवार, 16 मई 2020

दुर्योधन, मुझे अफ़सोस है, तुम हार गए! भाग-२

*दुर्योधन, मुझे अफ़सोस है, तुम हार गए!*

"अश्वत्थामा ने ऐसे मंत्र का जाप किया जिससे मैं युद्ध की समाप्ति तक जीवित रह सकता था।" 

अनुराग भारद्वाज की व्यंग्यात्मक कहानी #भाग-२

मुझे याद आ गया कि दुर्योधन ने महाभारत में कौनसा अपने वचनों को निभाया था जो खुद को दुर्योधन कह रहा यह आदमी निभाता! फिर एकदम से मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी, ‘कहीं ये सच तो नहीं कह नहीं रहा?
कुछ क्षणों के लिए सम्पूर्ण महाभारत मेरे जेहन में तेज़ी से उभरी और मेरे कानों में ज़ोर-ज़ोर से ‘कृष्ण’, ‘अर्जुन’, ‘भीष्म’ ‘दुर्योधन’, ‘द्रोपदी’ जैसे शब्द गूंजने लगे। चारों तरफ सैनिकों के चिल्लाने की आवाज़ें, हाथियों की चिंघाड, घोड़ों की टापें, शंखों की गूंज सुनाई देने लगी, तीरों और भालों के टकराने की आवाज़ें जैसे मेरे कान के परदे फाड़ देंगी और फिर उसी तेज़ी से विलुप्त भी हो गयीं! जिस तरह एक तेज़ धमाके के बाद कान सुन्न हो जाते हैं वही हाल मेरा भी था।
घबराहट में मैंने अपना सर झटक दिया और न जाने कब मेरा हाथ सामने रखी बोतल पर गया औेर मैंने एक घूंट में सारा पानी खत्म कर डाला। अब सब कुछ शांत लग रहा था. इतना शांत और ख़ामोश कि जैसे कोई तूफान अभी-अभी किसी बस्ती से सबकुछ रौंदकर गुज़रा हो। न जाने कितनी बार मैंने ‘महाभारत’ पढ़ा है और न जाने कितनी ही बार अपने-आपको कभी कृष्ण, कभी कर्ण, कभी युधिष्ठिर, कभी अर्जुन जैसे हालात में पाया है। पर कभी भी मैंने अपने आप को दुर्योधन नहीं समझा और आज वही दुर्योधन मेरे सामने बैठा था।
‘क्या हुआ?’ उसकी आवाज़ मुझे कुरुक्षेत्र से खींचकर उस ढाबे पर ले आई। ‘अब भी कोई संशय है?’ उसने पूछा। ‘नहीं’ मैंने कहा। उसने मेरी पीठ पर प्यार से हाथ फेरा और मेरे सर पर एक टपकी मारी। फिर धीरे से मुस्कुरा दिया। ‘डरो मत, तुम पांडव नहीं हो और फिर हमारे बीच इतनी सदियों का फासला है कि अब किसी भी प्रकार का बैर संभव नहीं है।’ मुझे ताज्जुब हुआ कि थोड़ी देर पहले मुझे एक ही मुक्के से ‘महाभारत’ काल में पहुंचाने वाला लंगड़ा आदमी, दुर्योधन होते ही सहज हो गया था।
घड़ी की तरफ देखा तो दिन के दो बज गए थे, मुझे विराटनगर पहुंचना था। मैंने अपना प्लान कैंसिल किया और एक झूठी कहानी बनाकर दफ्तर से एक दिन की छुटी ले ली। छुट्टी लेने के लिए हर काल में झूठी कहानी ही बनाई जाती है। अब मैं इत्मीनान से उससे बातें कर सकता था।
‘तुमने दफ्तर में झूठ क्यों बोला?’ उसने मासूम आंखों से मेरी तरफ देखा। अब तक मैं और भी सहज हो चुका था इसलिए मज़ाकिया लहजे में बोला, ‘हां, मुझे अपने बॉस को बोलना चाहिए था कि देखो साहब मेरी महाभारत के दुर्योधन से मुलाकात हो गयी है, मुझे उनसे बातें करनी हैं इसलिए मुझे आज की छुट्टी चाहिए और जो मेरा बॉस है वह तो एक युधिष्ठिर है जो मुझे ख़ुशी-ख़ुशी छुट्टी दे देता।’ हम दोनों हंसने लगे।
‘क्या द्वापर में कृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिर ने झूठ नहीं बोला था?’ डर और लिहाज़ के मारे मैंने उसका नाम नहीं लिया, ‘तुम मुझे कलयुग में सच बोलने को कह रहे हो।’
मैं अब और समय गंवाना नहीं चाहता था. ‘मुझे भूख लगी है, भाई’ उसने कहा। ढाबे की तरफ मैंने नज़र घुमाई तो समझ गया बकरी के दूध की चाय और बिस्कुट के अलावा यहां कुछ नहीं मिलेगा। ‘चलो, कहीं और चलते हैं, यहां खाना नहीं मिलेगा।’ रास्ते में मैंने उससे पूछा कि तुम तो उन चंद लोगों में से नहीं हो जिन्हें अमरता का वरदान मिला है, तो फिर अब तक ज़िंदा कैसे हो?
‘समंतपंचक में भीम ने मेरी जांघें तोड़ दीं और मैं उठने के लायक नहीं रहा था। भीम, उस समय पूरे आवेश में था। उसका बस चलता तो मुझे उस दिन ही मार देता और युद्ध समाप्त हो जाता, पर युधिष्ठिर ने उसको ऐसा करने से रोक दिया और यही युधिष्ठिर की भूल थी। अश्वत्थामा और कृपाचार्य को जब मेरे घायल होने का समाचार मिला तो वे दोनों रात के अंधेरे में छुपते-छुपाते मुझ तक पहुंचे। मेरे ह्रदय में युद्ध की आग अभी तक बुझी नहीं थी। मैंने अश्वत्थामा को अगला सेनापति बना दिया। वह पहले से ही द्रोणाचार्य की अनीतिपूर्वक मृत्यु से आहत था। उसने पांडवों का एक ही रात में वध करके युद्ध समाप्त करने की प्रतिज्ञा ली और सेनापति बनाये जाने के उपकार से कृतज्ञ होकर कृपाचार्य के साथ मेरी जांघों का उपचार भी किया। 
मुझ में जीने की इच्छा समाप्त हो चुकी थी पर वह मुझे युद्ध के परिणाम तक जीवित रखना चाहता था। अश्वत्थामा ने ऐसे मंत्र का जाप किया जिससे मैं युद्ध की समाप्ति तक जीवित रह सकता था। अश्वत्थामा ने उस रात कायरतापूर्वक द्रौपदी के सोते हुए पांच पुत्रों और समस्त पांचालों का वध कर दिया। धृष्टद्युम्न को मारकर उसने तो अपने पिता की मृत्यु का बदला ले लिया पर कृष्ण इस बर्बरता से इतना आहत हुए कि एक तरह से समाप्त हुआ युद्ध फिर शुरू हो गया। 
अर्जुन और अश्वत्थामा के मध्य बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ। कृष्ण और पांडवों ने उसके मस्तक से मणि निकाल ली और वह निस्तेज हो गया। शापित अश्वत्थामा जंगलों में चला गया और जिस मंत्र से उसने मुझे युद्धांत तक जीवित रखा था, उसका प्रभाव खत्म नहीं हुआ, परिणामस्वरूप मैं भी जीवित रह गया।’ यह सुनकर मैं चकित हो गया।
थोड़ा आगे जाने पर एक कामचलाऊ-सा होटल मिला और मैंने गाड़ी रोक ली। मैंने कहा, ‘अब यहां राजसी भोजन तो नहीं मिलेगा। हां, पेट ज़रूर भर जाएगा।’ उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया। भोजन करते-करते हम दोनों बातें कर रहे थे। मैंने उस काल से जुड़ी कई सारी बातें उससे पूछ डाली। उसने भी सभी बातों का विस्तार से उत्तर दिया।
‘क्या द्रौपदी बेहद सुंदर थी?’ मेरे इस प्रश्न ने उसको थोड़ा विचलित कर दिया और वह दूसरी तरफ देखने लग गया। ‘

क्रमशः...

सुविचार

विक्रम संवत.............२०७७
मास...............ज्येष्ठ
पक्ष................कृष्ण
तिथि...............नवमी
वार..................शनिवार
दिनांक.............१६-५-२०२०






🙏🏽 🌷 शुभम मंगल 🌷

 सुविचार:↔ " भाग्य पर वह भरोसा करता है, जिसमें पौरुष नहीं होता।"

शुक्रवार, 15 मई 2020

दुर्योधन, मुझे अफ़सोस है, तुम हार गए! भाग-१

*दुर्योधन, मुझे अफ़सोस है, तुम हार गए!*

मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरे सामने भीम से युद्ध करने वाला, द्रौपदी का अपमान करने वाला, संसार के सबसे महान युद्ध का सबसे बड़ा खलनायक दुर्योधन बैठा है।

अनुराग भारद्वाज की व्यंग्यात्मक कहानी# भाग-१

बैसाख और जेठ के महीनों में पश्चिमी भारत एक तरह से भट्ठी हो जाता है. सूरज इंसानों और जानवरों के जिस्म का पूरा पानी निचोड़ कर पी जाता है. बढ़ते शहरों की सीमाएं जंगलों लील गई हैं, और एक टुकड़ा छांव भी दिन के समय अगर कहीं सड़क के किनारे मिल जाए तो एक स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती है.

ऐसे ही किसी दिन विराटनगर जाते वक़्त मैंने एक ढाबे पर अपनी गाड़ी रोकी. गर्मी इतनी तेज़ थी कि अगर आंखों से चश्मा हटा लूं तो उनका पानी सदा के लिए ही सूख जाए. रहीम का दोहा ‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून...’ याद आ गया. वैसे तो आज के समय में किसी की आंखों में पानी बचा ही कहां है, पर फिर भी सूना तो कुछ हुआ नहीं है! मैंने चश्मा हटाया और आंखों पर गीला रुमाल रखकर दोहे को दुबारा याद कर लिया.
रुमाल हटाकर मैंने एक चाय का ऑर्डर दे दिया और पेड की छांव तले चारपाई पर पैर फैलाकर ज्यों ही लेटने को हुआ, मेरी नज़र एक निहायत ही आकर्षित व्यक्तित्व के आदमी पर पड़ी. वह ढाबे से थोड़ी दूर बैठा हुआ था. एक बार तो मैं उसको देखता ही रह गया. निहायत ही मज़बूत डील-डौल, ऊंची कदकाठी, तीखे नैननक्श, और मटमैले रंग की चमड़ी मुझे बार-बार उसे देखने को मज़बूर कर रही थी. ढाबे के मालिक से मैंने उस आदमी के बारे में पूछा तो उसने बताया, ‘भाई, ये आदमी तीन चार दिन पहले यहां आया है, लंगड़ा कर चलता है और कुछ पूछने पर सिर्फ इतना ही बोलता है - वो तो जांघ तोड़ दी उसने, वर्ना एक-एक को देख लेता.’

‘क्या, तुम दुर्योधन हो!’ मैं हंसा और कहा, ‘मैं भी भीम हूं.’ और फिर ज़ोर से हंसने लगा. उसने गुस्से में अपना पैर ज़मीन पर दे मारा. उसकी लात में इतना ज़ोर था कि आसपास की सारी धरती हिल गयी. मैं लगभग गिरते-गिरते बचा. मेरी ऊपर की सांस आसमान में और नीचे की सांस पाताल में धंस गई. मैं डर कर भागने के लिए उठा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. हाथ क्या था, जैसे किसी ने लोहे के कुंडे से मेरी कलाई जकड़ ली हो. मेरी रीढ़ की हड्डी तक एक सिहरन दौड़ गयी और मैं एकदम अपने हाथ-पांव समेट कर बैठ गया. 
‘डरो मत, तुमसे कोई बैर नहीं है, यहीं बैठे रहो.’ बड़े अधिकार से उसने कहा. मैं बैठ तो गया पर मेरी हालत शेर के सामने मेमने जैसी थी. उसने फिर कहा ‘ अब भी कोई संशय है?’ अपनी जान छुड़ाने के लिए उसकी बात मान ली. कुछ समय के लिए हम दोनों के बीच ख़ामोशी रही और फिर काम का हवाला देकर उससे मैंने भीख मांगने की मुद्रा में जाने की आज्ञा मांगी तो उसने मना कर दिया. जाने किसका मुंह देखकर सुबह उठा था आज कि आफ़त गले पड गयी थी.

थोड़ी देर बाद जब मैँ सहज हुआ तो उसने कहा, ‘महाभारत पढ़ी है?’ मैंने जान छुड़ाने के लिए गर्दन जल्दी से हां की मुद्रा में हिला दी. कुछ देर चुप रहने के बाद उसने दूसरा प्रश्न किया. ‘किसकी ग़लती थी, मेरी या पांडवों की?’ उसके इस प्रश्न से मेरे मन में खयाल आया कि हो न हो यह कोई गुंडा बदमाश है जो अपने-आप को आज का ‘दुर्योधन’ मानता है. वैसे तो कोई भी ‘दुर्योधन’ से कम नहीं है: मेरा पड़ोसी जिसकी नज़र हरदम दूसरे की बीवी पर रहती है, या कॉलोनी में अपने मकान के सामने की 40 फ़ीट सड़क पर 10 फ़ीट कब्ज़ा जमाकर अपने मकान को आगे बढ़ाने वाले लोग, सभी आज के दुर्योधन ही तो हैं? पर, वह शख्स मुझे थोड़ा अलग लगा, उसकी आंखों में लंपटपना न था.
उसने एक ही सांस में अपने 100 भाइयों के नाम गिना डाले, और कुरुओं की वंशावली भी. फिर कई ऐसी बातों का वर्णन किया जो उस काल में रहने वाले व्यक्ति के लिए ही संभव था.

‘जवाब दो?’ उसकी दमदार आवाज़ ने मुझे पडोसी और मेरी कॉलोनी के खयाल से खींचकर उसके सामने ला पटका. अपने बच्चों और बीवी की सूरतें और, थोड़ी देर पहले उसकी लात की ताकत याद करके, मैंने झट से कह दिया, ‘पांडवों की गलती थी.’ उसको हंसी आ गयी. वह हंसे जा रहा था और मैं एक बार फिर रुआंसा हो गया. मेरी हालत देखकर उसे तरस आ गया और वह मुस्कुराकर बोला, ‘सच बताओ?’ फिर थोड़ा और मुस्कुराकर बोला , ‘कहा ना, कुछ नहीं होगा.’

मन तो किया कि सच कह दूं, पर फिर कुछ सोचकर चुप ही रहा. ‘गलती पांडवों की थी’ उसने पूरे विश्वास से कहा. ‘और अगर तुम भी मुझे पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य या कृष्ण की तरह अनुचित ठहराते तो अभी एक ही मुक्के से तुम्हें उस ‘काल’ में पंहुचा देता.’ मैंने अपनी अकल और पहली बार बड़बोलापन न दिखाने पर राहत की सांस ली. याद आ गया कि दुर्योधन ने कौन सा महाभारत में अपने वचनों को निभाया था जो खुद को दुर्योधन कह रहा यह आदमी निभाता. फिर एकदम से मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी. ‘कहीं ये सच तो नहीं कह नहीं रहा?’ 
शेष कल...

सुविचार

विक्रम संवत.............२०७७
मास...............ज्येष्ठ
पक्ष................कृष्ण
तिथि...............सप्तमी
वार.................गुरुवार
दिनांक.............१४-५-२०२०






🙏🏽 🌺 भारत माता की जय 🌺

 सुविचार:👉 " बुद्धिमान व्यक्ति एक शब्द सुनता है और दो शब्द समझता है।"