बुधवार, 24 जून 2020

क्या विडंबना है! देखिए इन दोनों के कार्यों को।


340 ईस्वी में लिखित एक चीनी ग्रंथ में वर्णित चीनी पारंपरिक जड़ी बूटी चिकित्सा के आधार पर  मलेरिया की दवा और इलाज को पुख्ता करने वाली तू यू यू को 2015 में चिकित्सा का नोबल पुरस्कार मिला था। यू यू को चीनी सरकार ने लगभग 40 साल तक प्रोत्साहित किया, संरक्षण दिया। 

और भारत में आयुर्वेद, चरक और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथों में उल्लिखित इलाज और जड़ी बूटियों पर रिसर्च करके यदि बाबा रामदेव और उनकी पतंजलि प्रयोगशाला वाले corona के इलाज के लिए कोरॉनिल दवाई बनाते हैं तो उसका उपहास उड़ाते हुए उसको बिना परखे ही खारिज किया जा रहा है। खुद सरकार का आयुष मंत्रालय इसे प्रोत्साहित करने की बजाय हज़ार तरीके से इस पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति को हतोत्साहित करने पर आमादा है।      

सिकुलर कीड़े से ग्रसित आदतन  हर भारतीय पद्धति के विरोधियों से तो उम्मीद न थी कि वे इसका स्वागत करते पर सरकार से ये अपेक्षित था कि पतंजलि के इस नवीन दवाई को आगे बढ़ते हुए आयुष मंत्रालय प्रोत्साहित करता, और भी ट्रायल्स करता।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें