*कमाल है न!!*
वो जो बचपन में खुली छत पे इतने सारे भाई-बहनों के साथ सोते थे, उसकी कोई फ़ोटो ही नहीं खींची ।।
सुबह जब धूप हो जाती तो चारपाई के नीचे सो जाते, पर फ़ोटो लेना याद ही नहीं रहा !!!
ना गर्मी की छुट्टियों में नानी के अनगिनत अचार के मर्तबानों की फ़ोटो ली, ना दादी की कृष्ण जी को छप्पन भोग लगाते Video बनायी ...
ना वो आम के पेङ पर चढकर आम खाने की recording की...
ना कभी इमली तोङते हुए सेल्फी ली।।
बिना AC की ट्रेन में जो आलू की सब्जी- पूड़ियाँ ले के जाते थे, और स्टेशन पे बिना चिंता के रबरी, कचौरी खाते थे,....उनकी भी कहाँ तस्वीर खींची हमने....
पर हाँ,
एक-एक पल का पूरा विवरण याद है..हमेशा रहेगा.....
*क्योंकि शायद उस वक़्त तस्वीरें दिल पे बनती थीं, कैमरों में नहीं ।।*
Nice..
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