मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

खाली पेट -​ (लघुकथा)

लगभग दस साल का बालक राधा का गेट बजा रहा है।
राधा ने बाहर आकर पूंछा
"क्या है ? "
"माता जी क्या मैं आपका बगीचा साफ कर दूं ?"
"नहीं, हमें नहीं करवाना।"
हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में "कृपया माता जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।"
द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?"
"पैसा नहीं माताजी, खाना दे देना।"

" ओह !! अच्छे से काम करना।"
"लगता है, बेचारा भूखा है।पहले खाना दे देती हूँ। राधा बुदबुदायी।"
"ऐ
लड़के ! पहले खाना खा ले, फिर काम करना।

"नहीं माताजी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना।"
"ठीक है ! कहकर राधा अपने काम में लग गयी।"
एक घंटे बाद "माता जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं।"

"अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी पंक्ति से जमा दिए। यहाँ बैठ, मैं खाना लाती हूँ।"
जैसे ही राधा ने उसे खाना दिया वह जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।"

"भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले। जरूरत होगी तो और दे दूंगी।"
"नहीं माताजी, मेरी बीमार माँ घर पर है। सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है,पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है।"

राधा रो पड़ी....
और अपने हाथों से मासूम को उसकी दूसरी माँ बनकर खाना खिलाया।
फिर... उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई .. और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी...
और कह आयी .. बहन आप बहुत अमीर हो....

जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चो को भी नहीं दे पाते ..
*खुद्धारी की* ...।

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